Sangh Hriday Mein Bhar Paye Ab


Sangh Hriday Mein Bhar Paye Ab

संघ हृदय में भर पाएँ अब

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संघ हृदय में भर पाएँ अब घर घर अपने जाना है

संघ कार्य जीवन वृत मेरा कभी ना यह बिसरना है

अहंकार व्यक्तित्व हृदय से पूर्ण मिटा कर चलना है

तत्व ज्ञान की शिक्षा पा कर स्वर्णिम समय बिताना है 

तत्व सुधा रस पीकर निजा को अमृत पूर्ण बनाना है

सिद्धांतों पर अपने डट कर संघ नीव को भरना है 

निर्भय हो कर धृढ़ता से अब विपत्तियों से लढाना है 

अंतरंग बाह्यरंग हमारा सब समान सुनिर्मल है 

मानवता का अनुभव अपने कार्य रूप में लाना है 

हिन्दुत्व एक पनत्व भावना रोम रोम में भरना है 

हिन्दू हृदय सब एक रूप कर बिन्दु सिंधुवत करना है

रुतसी माँ के  बाहर अपने संघ शक्ति परकटना है 

कार्य कुशलता से ही अपना आगे पैर बढ़ाना है 

संघ शक्ति के प्रकर्ष में ही हिन्दू हृदय उत्कर्ष भरा

हिन्दी शक्ति के प्रकाश में रिपुदल का है नाश भरा 

धर्मा भक्ति की प्रदीब्ता ज्वाला धडक रही मन मंदिर में 

जल से जल सा यूज मुक्ति का तेज भरे प्रभु धरती में 
sangh hriday mein bhar paye ab
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