दयालु हंस (Dayalu Hans) by Dr. Priyanka Saraswat

दयालु हंस

एक समय की बात है, एक हंस और एक कौवा बहुत अच्छे मित्र थे । दोनों सड़क के किनारे एक घने छायादार वृक्ष पर रहते थे ।

गर्मियों में एक दिन दोपहर के समय एक यात्री सड़क से जा रहा था । सड़क के किनारे लगे उस घने व छायादार वृक्ष को देख कर उस थके हुए यात्री ने सोचा, �क्यों न इस पेड़ की ठंडी छाया में थोड़ी देर विश्राम कर लिया जाए ।� ऐसा सोच कर वह पेड़ की छाया में बैठ गया और अपने थैले से खाने की सामग्री निकाल कर खाने लगा । भोजन करने के पश्चात वह थैले को अपने सिर के नीचे रख कर सो गया ।

सोते हुए यात्री को हंस ने देख लिया । धीरे-धीरे समय के साथ-साथ छाया खिसक गई और सूर्य की किरणें सोते हुए यात्री के चेहरे पर पड़ने लगीं । तपती सूरज की किरणों को देख कर हंस का मन दया से भर गया । इसलिए उसने पंख खोल कर फैला दिए ताकि सूर्य की किरणें यात्री के चेहरे पर न पड़ सकें । थका-हारा यात्री हंस की दयालुता से अनजान आराम से सोता रहा । कौवा अपने स्वभाव से चालाक व धूर्त था । उसे दूसरों को परेशान करने में मजा आता था । जब उसने हंस की दयालुता को देखा तो उसके मन में शरारत करने की सूझी । वह अपने घोंसले से उड़ा और सोते हुए यात्री के सिर के ऊपर की शाखा पर जा बैठा । शाखा पर बैठते ही उसने यात्री के चेहरे के ऊपर बीट कर दी और वहां से तुरंत उड़ गया । अपने चेहरे पर बीट गिरते ही यात्री तुरंत उठ बैठा और खड़ा होकर पेड़ की ओर देखने लगा । उसने अपने चेहरे के ऊपर वाली शाखा पर एक हंस को बैठे देखा । यात्री ने सोचा कि जरूर उसके चेहरे पर इसी हंस ने बीट की है । गुस्से में आकर उसने एक पत्थर उठाया और पूरी ताकत से फेंक कर हंस को मारा ।

पत्थर फेंकते समय वह यह नहीं जानता था कि जिस हंस को वह पत्थर मार रहा है, वह हंस तो उसके लिए अच्छाई का काम कर रहा था। बेचारा दयालु हंस पत्थर की चोट से घायल हो कर नीचे गिर गया और कुछ ही देर में दर्द से छटपटा कर मर गया । बेचारा हंस मरते दम तक यह नहीं जान पाया कि धूर्त कौवे की मित्रता का उसे यह फल भोगना पड़ा है ।

इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमें किसी धूर्त व्‍यक्‍ति से मित्रता नहीं करनी चाहिए ।

लेखक : डॉ प्रियंका सारस्वत
स्वर : श्री सतेंद्र दहिया
सामग्री राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के वैबसाइट से उपलब्ध कराई गई है।

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