बुद्धिमान मंत्री
एक बुद्धिमान मंत्री था I इसी वजह से उस मंत्री को राजा व प्रजा से बहुत प्यार और सम्मान मिलता था Iएक शुभ दिन उस मंत्री ने अपनी पुत्री का विवाह निश्चित कर दिया I विवाह की लगभग सभी तैयारियां पूरी हो चुकी थी I मंत्री का घर फूलों व रोशनी से सजाया गया था I मंत्री ने राजा और उसके परिवार को भी विवाह में आमंत्रित किया था I साथ ही उस ने राज दरबार के सभी मंत्रियों, राजमहल के सभी कर्मचारियों, सिपाहियों, नौकरों-चाकरों आदि को भी निमंत्रण दिया था I
शाम होते ही विवाह से पहले राजा-रानी और अन्य शाही अतिथि विवाह-स्थल पर एकत्रित हो गए I मंत्री ने आगंतुकों का खुले दिल से स्वागत किया I इसके पश्चात वह उनको उनके उचित स्थान पर बैठाने के लिए ले गया I परंतु उस स्थान पर पहुंचते ही मंत्री ने देखा कि वहां राजा के निर्धारित स्थान पर महल का जमादार गोपी बैठा हुआ था I यह देखकर मंत्री बहुत क्रोधित हो गया I वह गोपी के पास गया और उसे उसके स्थान से उठाकर जोर-जोर से चिल्लाने लगा, `राजा के स्थान पर बैठने की तेरी हिम्मत कैसे हुई, मूर्ख ? यहां से तुरंत चला जा I`
गोपी को विवाह स्थल पर हुए अपने अपमान पर बहुत दुख हुआ I वह उसी समय मंत्री के घर से चला गया I परंतु वह मंत्री से किसी भी प्रकार बदला लेना चाहता था I इसलिए उसने एक योजना बनाई I
अगली सुबह जब गोपी राजा के शयन-कक्ष की सफाई करने गया तो उसने देखा कि राजा अपने पलंग पर अर्द्ध-निद्रा में लेटे हुए हैं I गोपी ने सोचा कि मंत्री से अपने अपमान का बदला लेने का यही सही मौका है I इसलिए वह बड़बड़ाते हुए बोला, `हमारे राजा भी कितने सीधे हैं I राजा को मंत्री पर कितना विश्वास है और रानी को मंत्री से कितना स्नेह है I`
`ओह नहीं, महाराज ! मैं रात को ठीक से सोया नहीं था I तो शायद नींद के नशे में कुछ बोल गया I `
परंतु राजा गोपी की बात सुनकर चिंतित रहने लगे I राजा ने सोचा, `गोपी पूरे राजमहल की सफाई करता है I अवश्य ही उसने रानी व मंत्री के बीच कुछ न कुछ देखा अथवा सुना होगाI मेरे सामने झूठ बोलने की किसी में हिम्मत नहीं I फिर नशे में तो आदमी सत्य ही बोलता है I `
उस दिन से राजा का उसके मंत्री के प्रति व्यवहार पूर्ण रूप से बदल गया I राजा के इस बदले हुए स्वभाव पर मंत्री भी कुछ चौंका I परंतु वह समझ नहीं पा रहा था कि यह सब क्यों और कैसे हो रहा है?
कुछ ही दिनों में मंत्री के प्रति राजा का शक, ईर्ष्या व क्रोध अपनी सीमा पार कर गए I राजा अब कभी मंत्री के सामने भी नहीं आते थे I क्रोधवश राजा ने अपने सिपाहियों को यह तक आदेश दे दिया कि मंत्री महल में प्रवेश न करने पाए I
एक दिन जब मंत्री शाही दरबार में उपस्थित होने के लिए जा रहा था, सिपाहियों ने उसे द्वार पर ही रोक लिया I बुद्धिमान मंत्री तुरंत समझ गया कि इसमें अवश्य ही गोपी जमादार की कोई चाल है I अपनी पुत्री के विवाह में उसकी गलती पर मैंने उसे अपमानित किया था, उसी दिन से राजा का मेरे प्रति व्यवहार बदला हुआ है I गोपी अवश्य ही अपने अपमान का बदला लेना चाहता है I वह सोचने लगा, `कोई भी व्यक्ति, जो हमारे लिए काम करता है, चाहे वह किसी भी वर्ग से संबंधित हो, उसका अपना एक आत्म सम्मान होता है I यदि हम उन्हें पूरा सम्मान देंगे तो वे भी हमें सम्मान देंगे I मुझे गोपी के साथ हुए दुर्व्यवहार व अपमान के लिए उस से माफी मांगनी चाहिए I
अगले दिन मंत्री ने गोपी को दोपहर के भोजन के लिए निमंत्रित किया I भोजन के पश्चात मंत्री ने गोपी से स्नेहपूर्वक कहा, `गोपी ! अपनी पुत्री के विवाह के दिन मैं बहुत व्यस्त व थका हुआ था, जिस समय राजा वहां आए, मैंने देखा कि राजा के स्थान पर तुम बैठे हो I यह देख कर मुझे और अधिक क्रोध आ गया I मैं अपने उस दिन के दुर्व्यवहार के लिए तुम से क्षमा मांगता हूं I ये कुछ उपहार हैं, कृपया इन्हें स्वीकार करो और उस दिन की घटना को भूल जाओI`
गोपी ने उपहारों की ओर ध्यान से देखा I उपहार में गोपी व उसके परिवार के अन्य सदस्यों के लिए रेशमी वस्त्र थे, मिठाइयों व फलों से भरे थाल भी थे I मंत्री ने गोपी को दस स्वर्ण मुद्राएं भी भेंट की I यह सब देख कर गोपी बोला, `आप इतना शर्मिंदा मत होइए I मैं भी आपसे क्षमा मांगता हूं क्योंकि मैं भी बिना यह जाने कि वह स्थान मेरे लिए उचित है या नहीं, वहां बैठ गया था I गलती मेरी भी थी I `
यह कहकर गोपी मंत्री से विदा लेकर वहां से चल पड़ा I रास्ते में वह सोचने लगा, `मंत्री जी तो बड़े दयालु और न्याय प्रिय व्यक्ति हैं I उनका कहना सही था कि वह उस दिन थके हुए और व्यस्त थे, इसलिए वह मुझ पर क्रोधित हो गए थे I मैं भी कैसा मूर्ख हूं जो उनसे बदला लेने की सोच रहा था I मुझे उन्हें राजा की नज़रों में फिर से उठाने के लिए कुछ ना कुछ करना चाहिए I
अगली सुबह गोपी रोज की तरह राजा के शयन कक्ष की सफाई करने पहुंचा तो उसने देखा कि आज भी राजा पलंग पर अर्द्ध-निद्रा में लेटे हुए हैं I उपयुक्त स्थिति देख कर गोपी बड़बड़ाते हुए बोला, `ओह! कितनी शर्मनाक बात है I इतने बड़े राजा का महल की दासी के साथ प्रेम चल रहा है I`
यह सुनकर राजा क्रोधित हो अपने पलंग से उठे और गोपी पर चिल्लाते हुए बोले, `मूर्ख! यह तू क्या कह रहा है ?`
`महाराज, मुझे क्षमा कीजिए I मैं रात भर सो नहीं सका था I इसलिए शायद मैं नींद के नशे में कुछ बड़बड़ा गया I मुझे क्षमा कर दीजिए I`
राजा सोचने लगा, `इस मूर्ख जमादार को शायद अनाप शनाप बड़बड़ाने की आदत है I अगर यह आज झूठ बोल रहा है तो अवश्य ही उस दिन भी इसने झूठ ही बोला होगा I इसका मतलब यह हुआ कि मंत्री निर्दोष है I ओह, मैं भी कितना मूर्ख हूं I मैंने मंत्री के साथ कितना दुर्व्यवहार किया है I `
अब राजा को अपनी गलती का एहसास हो गया था I सो उसने अपने मंत्री को बुलवाने के लिए संदेश भिजवाया I इसके बाद, मंत्री पहले के समान ही दरबार में आने लगा I उसने राजा से कभी नहीं पूछा कि राजा के व्यवहार में परिवर्तन का क्या कारण था क्योंकि वह जानता था कि यह सब गोपी को दिए गए उपहारों के कारण ही संभव हो पाया था I
इसलिए ठीक ही कहा गया है कि कभी भी किसी की कही हुई बातों पर विश्वास करके किसी दूसरे के प्रति बिना सोचे-समझे अपने स्वभाव में बदलाव लाना मूर्खता है I
लेखक : डॉ प्रियंका सारस्वत
स्वर : श्री सतेंद्र दहिया
सामग्री राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के वैबसाइट से उपलब्ध कराई गई है।
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