दुष्ट सर्प

अंडे खाकर सर्प चला गया । कौए ने कव्वी को ढांडस बंधाया `प्रिये, हिम्मत रखो। अब हमें अपने शत्रु का पता चल गया है। कुछ उपाय भी सोच लेंगे।`
कौए ने काफी सोचा विचारा और पहले वाले घोंसले को छोड़ कर उससे काफी ऊपर की टहनी पर घोंसला बनाया और कव्वी से कहा `यहां हमारे अंडे सुरक्षित रहेंगे। हमारा घोंसला पेड़ की चोटी के निकट है और ऊपर आसमान में चील मंडराती रहती हैं। चील सांप की बैरी है। दुष्ट सर्प यहां तक आने का साहस नहीं कर पाएगा।`
कौवे की बात मानकर कव्वी ने नए घोंसले में अंडे दिए जो सुरक्षित रहे और समय के साथ उनमें से बच्चे भी निकल आए।
उधर सर्प उनका घोंसला खाली देखकर यह समझा कि उसके डर से कौआ कव्वी शायद वहां से चले गए हैं, पर दुष्ट सर्प टोह लेता रहता था। उसने देखा कि कौआ-कव्वी उसी पेड़ से उड़ते हैं और लौटते भी वहीं हैं। उसे यह समझते देर नहीं लगी कि उन्होंने नया घोंसला उसी पेड़ पर ऊपर बना रखा है। एक दिन सर्प खोह से निकला और उसने कौओं का नया घोंसला खोज लिया।
घोंसले में कौआ दंपत्ती के तीन नवजात शिशु थे। दुष्ट सर्प उन्हें एक-एक करके घपाघप निगल गया और अपने खोह में लौटकर डकारें लेने लगा।
कौआ व कव्वी लौटे तो घोंसला खाली पाकर सन्न रह गए। घोंसले में हुई टूट-फूट व नन्हें कौओं के कोमल पंख बिखरे देखकर वह सारा माजरा समझ गए। कव्वी की छाती तो दुख से फटने लगी। कव्वी बिलख उठी `तो क्या हर वर्ष मेरे बच्चे सांप का भोजन बनते रहेंगे?`
कौआ बोला `नहीं! यह माना कि हमारे सामने विकट समस्या है पर यहां से भागना ही उसका हल नहीं है। विपत्ति के समय ही मित्र काम आते हैं। हमें लोमड़ी मित्र से सलाह लेनी चाहिए।`
दोनों तुरंत ही लोमड़ी के पास गए। लोमड़ी ने अपने मित्रों की दुख भरी कहानी सुनी। उसने कौआ तथा कव्वी के आंसू पोंछे। लोमड़ी ने काफी सोचने के बाद कहा `मित्रों! तुम्हें वह पेड़ छोड़कर जाने की कोई जरुरत नहीं है। मेरे दिमाग में एक तरकीब आ रही है जिससे उस दुष्ट सर्प से छुटकारा पाया जा सकता है।`
लोमड़ी ने अपने चतुर दिमाग में आई तरकीब बताई। लोमड़ी की तरकीब सुनकर कौआ-कव्वी खुशी से उछल पड़े। उन्होंने लोमड़ी को धन्यवाद दिया और अपने घर लौट आए। अगले ही दिन योजना अमल में लानी थी। उसी वन में बहुत बड़ा सरोवर था। उसमें कमल और नरगिस के फूल खिले रहते थे। हर मंगलवार को उस प्रदेश की राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ वहां जल-क्रीड़ा करने आती थी। उनके साथ अंगरक्षक तथा सैनिक भी आते थे।
इस बार राजकुमारी आई और सरोवर में स्नान करने जल में उतरी तो योजना के अनुसार कौआ उड़ता हुआ वहां आया। उसने सरोवर तट पर राजकुमारी तथा उसकी सहेलियों द्वारा उतारकर रखे गए कपड़ों व आभूषणों पर नज़र डाली। कपड़ों पर सबसे ऊपर था राजकुमारी का प्रिय हीरे व मोतियों का विलक्षण हार।
कौए ने राजकुमारी तथा सहेलियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए �कांव-कांव� का शोर मचाया। जब सबकी नज़र उसकी ओर घूमी तो कौआ राजकुमारी का हार चोंच में दबाकर ऊपर उड़ गया। सभी सहेलियां चीखी `देखो, देखो! वह राजकुमारी का हार उठाकर ले जा रहा है।`
सैनिकों ने ऊपर देखा तो सचमुच एक कौआ हार लेकर धीरे-धीरे उड़ता जा रहा था। सैनिक उसी दिशा में दौड़ने लगे। कौआ सैनिकों को अपने पीछे लगाकर धीरे-धीरे उड़ता हुआ उसी पेड़ की ओर ले आया। जब सैनिक कुछ ही दूर रह गए तो कौए ने राजकुमारी का हार इस प्रकार गिराया कि वह सांप वाले खोह के भीतर जा गिरा।
सैनिक दौड़कर खोह के पास पहुंचे। उनके सरदार ने खोह के भीतर झांका। उसने वहां हार और उसके पास में ही एक काले सर्प को कुंडली मारे देखा। वह चिल्लाया `पीछे हटो! अंदर एक नाग है।` सरदार ने खोह के भीतर भाला मारा। सर्प घायल हुआ और फुफकारता हुआ बाहर निकला। जैसे ही वह बाहर आया, सैनिकों ने भालों से उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले।
सीखः बुद्धि का प्रयोग करके हर संकट का हल निकाला जा सकता है।
संदर्भ : पंचतंत्र की कहानियाँ
स्वर : श्री सतेंद्र दहिया
सामग्री राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के वैबसाइट से उपलब्ध कराई गई है।
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