घंटीधारी ऊंट (Ghantidhari Unt) from Panchtantra

घंटीधारी ऊंट

घंटीधारी ऊंट (Ghantidhari Unt) from Panchtantra
एक बार की बात है कि एक गांव में एक जुलाहा रहता था। वह बहुत गरीब था। उसकी शादी बचपन में ही तय हो गई थी। बीवी आने के बाद घर का खर्चा बढ़ जाएगा, यही चिन्ता उसे खाए जाती। दुर्भाग्य से गांव में अकाल पड़ गया। लोग कंगाल हो गए। जुलाहे की आय एकदम खत्म हो गई। उसके पास शहर जाने के सिवा और कोई चारा न रहा।

शहर में उसने कुछ महीने छोटे-मोटे काम किए। थोड़ा-सा पैसा अंटी में आ गया और गांव से खबर आने पर कि अकाल समाप्त हो गया है, वह गांव की ओर चल पडा। रास्ते में उसे एक जगह सड़क किनारे एक ऊंटनी नज़र आई। ऊंटनी बीमार नज़र आ रही थी और वह गर्भवती थी। उसे ऊंटनी पर दया आ गई। वह उसे अपने साथ अपने घर ले आया।

घर में ऊंटनी को ठीक चारा व घास मिलने लगी तो वह पूरी तरह स्वस्थ हो गई और समय आने पर उसने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। ऊंट का बच्चा उसके लिए बहुत भाग्यशाली साबित हुआ। कुछ दिनों बाद ही एक कलाकार गांव के जीवन पर चित्र बनाने उसी गांव में आया। पेंटिंग के ब्रुश बनाने के लिए वह जुलाहे के घर आकर ऊंट के बच्चे की दुम के बाल ले जाता। लगभग दो सप्ताह गांव में रहने के बाद चित्र बनाकर कलाकार चला गया।

इधर ऊंटनी खूब दूध देने लगी तो जुलाहा उसे बेचने लगा। एक दिन वह कलाकार गांव लौटा और जुलाहे को काफी सारे पैसे दे गया, क्योंकि कलाकार ने उन चित्रों से बहुत पुरस्कार जीते थे और उसके चित्र अच्छी कीमतों में बिके थे। जुलाहा उस ऊंट के बच्चे को अपने भाग्य का सितारा मानने लगा। कलाकार से मिली राशि के कुछ पैसों से उसने ऊंट के गले के लिए सुंदर-सी घंटी खरीदी और उसे पहना दी। इस प्रकार जुलाहे के दिन फिर गए। वह अपनी दुल्हन को भी एक दिन गौना करके ले आया।

जुलाहे के जीवन में ऊंटों के आने से जो सुख आया, उससे जुलाहे के दिल में इच्छा हुई कि जुलाहे का धंधा छोड़ क्यों न वह ऊंटों का व्यापारी ही बन जाए। उसकी पत्नी भी उससे पूरी तरह सहमत हुई। अब तक वह भी गर्भवती हो गई थी और अपने सुख के लिए ऊंटनी व ऊंट के बच्चे की आभारी थी।

जुलाहे ने कुछ ऊंट खरीद लिए। उसका ऊंटों का व्यापार चल निकला। अब उस जुलाहे के पास ऊंटों की एक बड़ी टोली हर समय रहती। उन्हें चरने के लिए दिन को छोड़ दिया जाता। ऊंट का बच्चा जो अब जवान हो चुका था उनके साथ घंटी बजाता जाता ।

एक दिन घंटीधारी की तरह ही के एक युवा ऊंट ने उससे कहा `भैया! तुम हमसे दूर-दूर क्यों रहते हो?`

घंटीधारी गर्व से बोला `वाह, तुम एक साधारण ऊंट हो। मैं घंटीधारी, मालिक का दुलारा हूं। मैं अपने से छोटे ऊंटों में शामिल होकर अपना मान नहीं खोना चाहता।`

उसी क्षेत्र में वन में एक शेर रहता था। शेर एक ऊंचे पत्थर पर चढ़कर ऊंटों को देखता रहता था। उसे एक ऊंट अन्‍य ऊंटों से अलग-थलग रहता नज़र आया। जब शेर किसी जानवर के झुंड पर आक्रमण करता है तो किसी अलग-थलग पड़े जानवर को ही चुनता है । घंटीधारी की आवाज़ के कारण यह काम भी सरल हो गया था। बिना आंखों देखे वह घंटी की आवाज़ पर घात लगा सकता था।

दूसरे दिन जब ऊंटों का दल चरकर लौट रहा था । तब घंटीधारी बाकी ऊंटों से बीस कदम पीछे चल रहा था। शेर तो घात लगाए बैठा ही था। घंटी की आवाज़ को निशाना बनाकर वह दौड़ा और उसे मारकर जंगल में खींच ले गया। इस प्रकार घंटीधारी ऊंट के अहंकार ने उसके जीवन की घंटी बजा दी।


सीखः  जो स्वयं को ही सबसे श्रेष्ठ समझता है उसका अहंकार शीघ्र ही उसे ले डूबता है।

संदर्भ : पंचतंत्र की कहानियाँ
स्वर : श्री सतेंद्र दहिया
सामग्री राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के वैबसाइट से उपलब्ध कराई गई है।

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