पहले विचारो फिर करो (Pahale Vicharo Fir Karo) by Dr. Priyanka Saraswat

पहले विचारो फिर करो

मणीराम नामक ब्राह्मण के घर जिस समय पुत्र ने जन्म लिया, उसी समय उसे एक नेवले का बच्चा भी कहीं से मिल गया । उस नेवले के बच्चे को वह भाग्यशाली समझ कर घर ले आया । वे दोनों बच्चे एक साथ पलने लगे ।

एक दिन ब्राह्मण की पत्नी भोली नदी में स्नान करने जाते समय बच्चे की देखभाल करने के लिए अपने पति को सावधान कर गई । पत्नी के जाते ही ब्राह्मण को राजा के दरबार में जाने का निमंत्रण मिल गया । अब उस बेचारे मणीराम के सामने बहुत बडी समस्या उत्पन्न हुई। यदि वह बच्चे को अकेला छोड़ता है तो मुसीबत और यदि राजा का निमंत्रण स्वीकार नहीं करता तो फांसी ।

इसलिए उसने यही निर्णय किया कि वह अपने लड़के की रक्षा के लिए इस नेवले को ही छोड़ जाए क्योंकि अपने जीवन की रक्षा करना भी तो जरुरी है । यही सोचकर वह राजा के दरबार की ओर चला गया ।

ब्राह्मण जैसे ही उठ कर गया, एक सांप कहीं से आ कर बच्चे की ओर जाने लगा । नेवले ने उस सांप को देखते ही क्रोध में आकर उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए । नेवले ने तो सांप को मार डाला था किंतु उसका सारा शरीर खून से लथपथ हो गया था । उधर ब्राह्मण भी राज दरबार से दानपात्र लेकर आ गया था । उसने जैसे ही नेवले को खून से लथेड़ा देखा, उसे समझने में देर न लगी की नेवले ने उसके बच्चे को मार डाला है ।

बस क्रोध में भरे ब्राह्मण ने लठ उठा कर नेवले को मार दिया । वह बेचारा मर कर वहीं ढेर हो गया ।

नेवले को मारकर जैसे ही ब्राह्मण अंदर गया तो उसने देखा कि उसका बेटा तो गहरी नींद सो रहा है, हां, उसकी चारपाई के पास सांप के टुकड़े पड़े हैं । मणीराम सारी बात को समझ गया । उसे यह भी पता चल गया था कि उसने निर्दोष और वफादार नेवले की हत्या करके बहुत बड़ा पाप किया है । किंतु अब तो कुछ नहीं हो सकता था । वह बार-बार यही सोच रहा था, कि काश मैं पहले विचार कर लेता, तो यह पाप तो न होता ।

इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि कोई भी काम करने से पूर्व हमें उस पर सोच-विचार करना चाहिए ।


लेखक : डॉ प्रियंका सारस्वत
स्वर : श्री सतेंद्र दहिया
सामग्री राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के वैबसाइट से उपलब्ध कराई गई है।

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