चोर की दाढ़ी में तिनका
किसी जंगल में एक मोर व एक राजहंस परिवार खुशी से रहते थे । उनमें आपस में बहुत गहरा प्यार था । उनके घर के पास एक सुन्दर मैदान था और पास में ही एक गहरा नीला तालाब। कभी-कभी आसमान में बादल छा जाने से मोर अपने नृत्य से सभी का मन मोह लेता । राजहंस भी उस गहरे तालाब में दूर-दूर तक तैरता रहता । कभी-कभार वह मोर-मोरनी के बच्चों को अपनी पीठ पर दूर-दूर की सैर भी करा लाता । इस प्रकार उनका जीवन खुशी से बीतता जा रहा था ।उनके सामने ही बरगद के पेड़ पर नीलू कौवा रहता था । वह इनकी बढ़ती हुई मित्रता से मन-ही-मन जलता रहता था । एक दिन वह कांव-कांव करता हुआ कृष्णा तालाब के किनारे पहुंच गया और राजहंस को अकेला देख बड़े प्रेम से कहने लगा - `राजहंस भैया, मैं कृष्णा तालाब के किनारे और ऊपर वाले पर्वत में रहता हूँ । जब आप तालाब में तैरते रहते हैं तो मोर व मोरनी आपके बच्चों को कई ताने सुनाते रहते हैं और उन्हें परेशान करते हैं । ऐसे में बेचारे बच्चे कैसे बड़े होंगे ?`
`तुम्हें कैसे मालूम?`राजहंसनी ने पूछा ।
`मुझे बार-बार यह देखते हुए बहुत दु:ख होता है । आज सवेरे ही वह कह रहे थे कि हम तो कितना अच्छा नृत्य कर लेते हैं । राजहंसों को कौन पूछता है, पूरे जंगल में पक्षियों के राजा तो हम हैं । हमारी सुंदरता का मुकाबला दुनिया में कौन कर सकता है ? इसलिए मैं ऐसा सहन नहीं कर पाया, तो आप के पास चला आया ।` यह कह कर वह फुर्र से उड़ गया ।
उस रात कौवा गहरी नींद सोया । फिर अगले दिन वह सुबह होते ही मोर के पास पहुंचा। सावन का महीना था । बादलों को देख मोर नाच रहे थे । कौवा जैसे ही उनके आंगन में आया तो प्रेम से बोला, `नमस्ते मोर भैया । कई दिनों से तुम से मिलने की इच्छा थी । कृष्णा तालाब में मुझे एक राजहंस मिला । वह तो हवा मे बात करता है, गर्व के मारे उसके पांव धरती पर नहीं पड़ते, कहता था कि मोर हमारी क्या तुलना कर सकते हैं । शरीर सुंदर है तो क्या हुआ, पैर तो इतने गंदे हैं कि देखते ही जी खराब हो जाता है, खुरदरे और भद्दे जो हैं । उनकी और हमारी क्या दोस्ती ? वो तो सूखे पहाड़ों में रहने वाले हैं और हम ठहरे पानी के पंछी । हमारा तो उनके साथ रहने को जी नहीं करता, परंतु क्या करें... घुस-घुस कर आंगन में आ जाते हैं । कभी दूध की मक्खी की तरह फेंक देंगे तो पता चलेगा । अच्छा भैया, चलता हूं । मैं तो तुम्हें अपना जान, यह सुन नहीं पाया ।` ऐसा कह वह फिर फुर्र से उड़ गया ।
अब मोर व राजहंस के परिवार में आपसी मनमुटाव धीरे-धीरे बढ़ने लगा । एक दिन जंगल में आनंद उत्सव था । जंगल जाने से पहले मोरनी ने राजहंसनी से पूछा, `बहन, क्या तुम्हें भी नीलू कौवे ने कुछ कहा ?`
`और क्या नहीं? मैं तो तुमसे यह सब जीवन में कभी सोच नहीं सकती थी । परंतु ठीक है, समय ही ऐसा है ।` राजहंसनी ने आंखें तरेर कर कहा ।
`नहीं बहन, ऐसा कुछ नहीं है । हमें भी तुम्हारे बारे में जाने क्या कुछ कहा गया है। तो चलो, आज ही जंगल जाने से पूर्व उसी के घर पर सच्चाई की परख कर लें कि कौन अच्छा है और कौन कपटी । हमें डर तो तब हो जब मन में मैल हो । मन चंगा तो कठौती में गंगा ।` मोरनी ने हंसते हुए कहा ।
यह सुन दोनों ही परिवार नीलू कौवे के आवास पर गए । उसकी पत्नी ऋतु कई महीने पहले चापलूसी करते जंगल की आग में जल मरी थी । इसलिए वह अकेला होते हुए किसी को भी खुश नहीं देख सकता था ।
`नमस्ते, नीलू अंकल ।` सभी बच्चों ने प्रेम से कहा ।
लेकिन नीलू कैसे बोलता, उसके पैरों तले की तो जमीन ही खिसक गई । वह शर्म के मारे पानी-पानी हो गया । फिर उसने उन्हें बैठाया और यह कहकर कि वह जल्दी उनके लिए नाश्ता लेकर आता है, फुर्र से उड़ गया ।
वे उसकी बाट देखते रहे पर नीलू फिर ना लौटा, क्योंकि `चोर की दाढ़ी में तिनका` ।
लेखक : डॉ दिनेश चमोला
स्वर : श्री सतेंद्र दहिया
सामग्री राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के वैबसाइट से उपलब्ध कराई गई है।
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