राजभक्त राजकुमार

एक दिन एक राजकुमार उसके राजदरबार में उपस्थित हुआ और बोला, `महाराज ! मैं आपके पड़ोसी राज्य के राजा का पुत्र हूं परंतु मेरे दुर्भाग्य के कारण मेरे पास अब कुछ भी नहीं है । मैं यहां आपका सेवक बनने के लिए आया हूं । मैंने आपके दयालु स्वभाव के विषय में बहुत कुछ सुना है । कृपया मुझे अपनी सेवा का अवसर दे कर कृतार्थ कीजिए I`
`तुम क्या चाहते हो? तुम्हारी क्या योजना है और तुम मेरी सेवा कैसे कर सकते हो?` राजा ने राजकुमार से पूछा।
`महाराज, मेरे पास अपना शक्तिशाली शरीर व अपनी स्वामी-भक्ति है । मैं इसे आप को सौंपना चाहता हूं और इसके बदले में आपसे प्रतिदिन पांच-सौ स्वर्ण मुद्राओं की आशा करता हूं।`
राजकुमार के मुंह से ऐसी बातें सुनकर राजा हैरान रह गया । वह बोला, `मुझे क्षमा करना, राजकुमार! मैं तुम्हारी आशा के अनुरुप इतना वेतन नहीं दे सकता । मैं यह तो नहीं कह सकता कि तुम इसके योग्य हो या नहीं, पर मेरे विचार से यह वेतन तो बहुत अधिक है । मैं तुम्हारी बात नहीं मान सकता ।`
राजकुमार ने राजा को झुक कर प्रणाम किया और चुपचाप वहां से चला गया । राजकुमार के जाते ही प्रधानमंत्री राजा से बोला, `महाराज, मेरे विचार से हमें उस युवक को कुछ दिन के लिए रख लेना चाहिए और उसे पांच-सौ स्वर्ण मुद्राएं प्रतिदिन दे देनी चाहिए तथा यह देखना चाहिए कि वह क्या कर सकता है ? उसकी क्षमता कितनी है ?`
प्रधानमंत्री की बात सुनकर राजा ने राजकुमार को वापस बुलाने के लिए अपने सैनिकों को आदेश दिया । इस तरह राजा राजकुमार को प्रतिदिन पांच-सौ स्वर्ण मुद्राएं देने को राजी हो गया । साथ ही राजा ने अपने गुप्तचरों को राजकुमार पर नजर रखने का आदेश दिया ताकि यह पता लगाया जा सके कि वह अपने धन का किस प्रकार उपयोग करता है ।
रात्रि के समय राजा के गुप्तचर वापस राजा के पास आए और बोले, `महाराज, राजकुमार ने रहने के लिए एक बहुत छोटा कमरा लिया है । उसके साथ उसकी पत्नी व एक पुत्र भी है। उसने अपना अधिकांश धन पूजा-पाठ जैसे धार्मिक कार्यों में खर्च कर दिया और थोड़ा धन गरीबों और ब्राह्मणों को दान कर दिया । उसके पास अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत ही थोड़ी सी स्वर्ण मुद्राएं शेष बची हैं ।`
राजा द्वारा दी गई स्वर्ण मुद्राओं को राजकुमार प्रतिदिन इसी प्रकार खर्च करता था। राजकुमार के इस स्वभाव से प्रसन्न होकर राजा ने राजकुमार को अपना संरक्षक नियुक्त कर दिया I
एक रात राजा गहरी नींद में सो रहे थे I राजकुमार राजा की सुरक्षा के लिए कक्ष के द्वार पर बैठा था । अचानक राजा को किसी स्त्री के रोने की आवाज सुनाई दी । राजा ने राजकुमार को बुलाया और उसे उस स्त्री को ढूंढकर उसके रोने के कारण का पता लगाने को कहा। राजकुमार के चले जाने के पश्चात राजा ने अपनी तलवार उठाई और राजकुमार के पीछे-पीछे चलने लगे I राजकुमार यह नहीं जानता था कि राजा भी उसके पीछे-पीछे आ रहा है ।
कुछ दूर तक चलने के बाद राजकुमार को एक स्त्री दिखाई दी । राजकुमार ने उससे पूछा, `हे देवी, आप कौन हैं ? आप इतनी रात्रि को इस प्रकार अकेली बैठी क्यों रो रही हैं ? क्या मैं आपकी किसी प्रकार से मदद कर सकता हूं ?`
स्त्री ने कहा, `हे पुत्र, मैं इस राज्य की लक्ष्मी हूं । मैं यहां की समृद्धि व धन की देवी हूं। मैं इस राज्य में पिछले कई वर्षों से रह रही हूं । अब मुझे इस राज्य को छोड़ कर जाना होगा, परंतु मैं इस राज्य को छोड़ना नहीं चाहती ।`
इस पर राजकुमार बोला, `ओह ! यह तो बहुत दुखद बात है । क्या ऐसी कोई तरकीब है जिससे आप यहां से न जाएं ?`
स्त्री ने जवाब दिया, `हां, इसका उपाय तो है पर वह उपाय बहुत कठिन है । इसके लिए तुम्हें देवी सर्वमंगला को अपने पुत्र की बलि चढ़ानी होगी । यदि तुमने उन्हें प्रसन्न कर दिया तो उनकी आज्ञा से मैं यहां हमेशा के लिए रह सकूंगी ।`
ऐसा कहकर वह स्त्री अदृश्य हो गई । राजकुमार बोला, `ठीक है, देवी ! अपने राजा को बचाने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं ।`
ऐसा कह कर राजकुमार वहां से सीधे अपने घर गया और उसने अपनी पत्नी व पुत्र को जगाकर उठाया । उसके साथ जो भी हुआ था वह सब उसने उन्हें बता दिया । राजकुमार का आठ वर्षीय पुत्र बोला, `पिता जी, मैं इस त्याग के लिए तैयार हूं । दयालु राजा हमारे भगवान हैं। आप मुझे जैसी भी आज्ञा देंगे, मैं वैसा ही करूंगा । मैं राजा के लिए अपने प्राणों का बलिदान खुशी-खुशी दे सकता हूं ।`
राजकुमार की पत्नी ने भी मुस्कुराते हुए इजाजत दे दी । तीनों मिल कर एक साथ सर्वमंगला देवी के मंदिर में गए । प्रार्थना करने के पश्चात राजकुमार ने अपने पुत्र का सिर काट दिया । फिर राजकुमार बोला, `हे देवी, राजलक्ष्मी के द्वारा बताए उपाय के अनुसार उन्हें अपने पास रोकने के लिए मैंने अपना पुत्र आपको भेंट कर दिया । अब मेरे जीने का कोई आधार नहीं रहा, इसलिए मैं भी अपने आप को भेंट चढ़ाता हूं । इसे स्वीकार करें ।`
ऐसा कहकर राजकुमार ने अपना सिर भी काट दिया । इसके पश्चात राजकुमार की पत्नी ने भी सर्वमंगला देवी को अपनी बलि अर्पित कर दी ।
राजा वहीं छिप कर यह सब देख रहा था । उसके मन में सुखद व दुखद दोनों प्रकार की भावनाएं उमड़ रही थीं । वह मंदिर में गया और बोला `देवी, आपने मुझे इतना राजभक्त सेवक दिया था और उस कुलीन आत्मा ने मेरे लिए अपने व अपने परिवार के प्राणों का त्याग कर दिया । राजकुमार के बिना मेरा जीवन निरर्थक है । अतः आप मेरी भेंट भी स्वीकार करें ।`
ऐसा कह कर राजा ने तलवार निकाली और अपने सिर को भी भेंट करने को तैयार हो गया । तभी अचानक देवी सर्वमंगला वहां प्रकट हुईं और बोलीं, `हे राजन्, रुको! तुम एक महान राजा हो । मैंने तुम्हारे न्याय व दया के अनेक किस्से सुने थे । साथ ही साथ तुम्हारे सेवक भी बहुत पवित्र आत्माएं हैं I सो मैं तुम्हारी व तुम्हारी जैसे पवित्र आत्मा वाले लोगों का अशुभ कैसे सोच सकती हूं ? मैं तुम्हारी त्याग व भक्ति की भावना से प्रसन्न हूं । इसलिए मैं राजकुमार व उसके परिवार को जीवनदान देती हूं । आपकी राजलक्ष्मी अब आपके राज्य को छोड़कर कहीं नहीं जाएगी ।` ऐसा कह कर देवी सर्वमंगला वहां से अदृश्य हो गई ।
राजकुमार व उसका परिवार पुन: जीवित हो गए । दयालु राजा ने राजकुमार को गले लगाया व अपना आधा राज्य उसे सौंप दिया । दोनों अब मित्र बन गए और उन्होंने कई वर्षों तक उस राज्य पर खुशी-खुशी राज किया ।
लेखक : डॉ प्रियंका सारस्वत
स्वर : श्री सतेंद्र दहिया
सामग्री राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के वैबसाइट से उपलब्ध कराई गई है।
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