Geet Sanskriti Ke Matribhumi Bhakti
गीत संस्कृति के मातृभूमी भक्ति
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गीत संस्कृति के मातृभूमी भक्ति ।
साथ गा रहा है एक एक व्यक्ति ॥धृ॥
आर्य यज्ञ ज्वाला शांत बुद्ध स्तूप
प्रेमपूर्ण मां का अभय हस्त रुप
शौर्य दान सेवा कर्म धर्म भक्ति ॥१॥
विविध पंथ भाषा सृष्टि जगती की
वेदबाह्य वाणी उच्च नीचता की
एक किरण जैसी सप्त रंग सृष्टि ॥२॥
विफल यत्न सारे जड उखाडने के
आत्मसात करते भेद तत्व सारे
एक गंगधारा सब सरित समाति ॥३॥
सकल जगत बोले हिन्दु संस्कृती जय
हिन्दु चेतना से विश्व धर्म की जय
विश्व जोडने की सन्घ मन्त्र शक्ति ॥४॥
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