चालाक कौवा (Chalak Chauwa) by Dr. Priyanka Saraswat

चालाक कौवा

एक बाग में पेड़ पर एक कौवा और बटेर रहते थे I उन दोनों में बहुत गहरी मित्रता थी I कई बार कौवे और बटेर दोनों को भरपेट भोजन नहीं मिल पाता था जिसकी वजह से दोनों अक्सर भूखे रह जाते थे I एक दिन दोनों ने भोजन की तलाश में नजदीक के गांव में जाने का निर्णय किया I

दोनों मित्र गांव की और उड़ चले I जब वे गाँव के ऊपर पहुंचे तो कौवे ने देखा कि एक आदमी अपने सिर पर मिट्टी के मटके में कुछ लिए जा रहा है I वह एक दही वाला था जो अगले गाँव में दही बेचने जा रहा था I मार्ग में एक विशाल वृक्ष देख कर दही वाले ने वहीं ठहर कर कुछ देर विश्राम करने का विचार किया I ऐसा सोच कर उसने अपना मटका ज़मीन पर रखा और पेड़ के नीचे जाकर बैठ गया I कौव्वा और बटेर भी भोजन की तलाश में उड़ते-उड़ते थक कर उसी पेड़ की एक डाल पर जा बैठे I दही वाले ने अपने मटके को कपड़े से ढका नहीं था, केवल मटके के मुंह पर एक तश्तरी रख रखी थी I कौवे ने मटके की तश्तरी को हटाकर देखा और आकर बटेर से कहा, `मित्र, उस आदमी के मटके में स्वादिष्ट दही है I चल कर उसका स्वाद चखने का प्रयास करते हैं I`

`परंतु हम ऐसा कैसे कर सकते हैं ?` बटेर ने पूछा I

कौवे ने कहा, ` बस तुम देखते जाओ, मैं झट से मटके के पास जाऊंगा और अपनी चोंच में दही भर कर झट से उठ जाऊंगा I`

ऐसा कहते ही कौवे ने जैसा कहा था, वैसा ही किया I उसे मीठी दही का स्वाद बहुत पसंद आया I इसलिए वह बार-बार दही का स्वाद चखने के लिए मटके के पास जाने लगा I इसी बीच, दही वाले की आंख खुल गई I उसने तश्तरी उठाकर मटके के मुंह पर रखी और मटका सिर पर रख कर चल दिया I बटेर बोला, `मित्र, अब तुम दोबारा ऐसा मत करना I यदि दही वाले ने तुम्हें देख लिया तो वह तुम्हें पकड़ लेगा I `

`नहीं, नहीं I वह मुझे नहीं देख पाएगा I मैं मटके के पास उसके पीछे से जाऊंगा I `

बटेर कौवे को लगातार चेतावनी दे रहा था I परंतु कौवे ने बटेर की एक न सुनी और लगातार दही खाने लगा I शीघ्र ही दही वाला उस घर के पास पहुंच गया जहां उसे वह दही देनी थी I जब दही वाले ने मटका जमीन पर रखा तो उसने देखा कि मटका लगभग खाली हो चुका था I उसमें थोड़ी सी ही दही बची हुई थी I इधर-उधर देखने पर उसने पाया कि एक बटेर व कौवा एक दीवार पर बैठे हुए हैंI

कौवे की दही से सनी चोंच देखते ही दही वाला समझ गया कि सारी दही कौवे ने ही खाई है I क्रोध में दही वाले ने एक पत्थर उठाया और पूरी शक्ति से कौवे की तरफ फेंक दिया I यह देखते ही कौवा तुरंत उड़ गया I सो पत्थर कौवे को न लगकर मासूम व निर्दोष बटेर को जा लगा I फलस्वरुप निर्दोष बटेर जमीन पर गिर कर मर गया I

बेचारा बटेर देर से समझ पाया कि धूर्त कौवे की चालाकी तथा गलती का परिणाम उसे भी भुगतना पड़ सकता हैI

लेखक : डॉ प्रियंका सारस्वत
स्वर : श्री सतेंद्र दहिया
सामग्री राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के वैबसाइट से उपलब्ध कराई गई है।

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