शक्तिशाली मेढा
एक समय की बात है, एक गांव में एक खूबसूरत मेढ़ा रहता था । उसके सिर पर लंबे, तीखे, मजबूत व घुमावदार दो सींग थे । उसके घने, घुंघराले व चमकदार बाल उसके सौंदर्य में चार चांद लगाते थे । उस मेढ़े को इधर-उधर घूमने का बहुत शौक था । एक दिन घूमते-घूमते वह गांव से बाहर एक जंगल में चला गया । काफी देर घूमने के पश्चात जब उसने वापस अपने घर जाने का निर्णय किया तो पाया कि वह अपने घर का रास्ता भूल गया है । उसने अपने घर का रास्ता ढूंढने की बड़ी कोशिश की, पर उसे कामयाबी नहीं मिली। तब निराश होकर वह जंगल में ही अपने रहने के लिए उचित स्थान की तलाश करने लगा । कुछ देर तक तलाशने के पश्चात उसे एक मैदान दिखाई दिया । वहां कुछ पेड़-पौधे व हरी-हरी घास उगी हुई थी । उसने वहीं अपना घर बना लिया और रहने लगा ।मेढ़ा एक ऐसा जानवर था जिसे इससे पहले जंगल में किसी ने नहीं देखा था। उसके लंबे घुमावदार सींग व घने-घुंघराले तथा चमकीले बालों वाले शरीर को देखकर जंगल के सभी जानवर उस से डरने लगे । इसलिए जंगल के किसी भी जानवर ने मेढ़े के पास जाने का साहस नहीं किया । फलस्वरुप मेढ़ा वहां बिना किसी भय के आरामदायक जीवन जीने लगा।
एक दिन एक शेर, जो कि जंगल का राजा था, उस ओर आ पहुंचा जहां मेढ़ा रहता था । मेढ़े के विचित्र रूप को देखकर शेर डर गया । मेढ़े ने अपने घुमावदार सींगों से एक विशाल वृक्ष की शाखा को खींचा, जिससे पूरा वृक्ष हिल गया और उस की ढेर सारी सूखी पत्तियां खड़खड़ाती हुई जमीन पर आ गिरीं । यह देख कर शेर डर से कांपने लगा और सोचने लगा, `यह दैत्याकार प्राणी कितना बलवान है जो अपनी सीगों से इतने विशाल पेड़ों के पत्ते तक गिरा सकता है ।` ऐसा सोच कर भयभीत शेर वहां से भाग गया ।
कुछ दिनों के पश्चात् जब शेर एक बार फिर उस स्थान पर आया तो उसने देखा कि मेढ़ा तो जमीन पर उगी हरी-हरी घास, झाड़ियों व पेड़ों पर लगे पत्तों को तोड़-तोड़ कर खा रहा है । यह देख कर शेर का भय कुछ कम हुआ और वह सोचने लगा, `अरे, यह कोई खतरनाक दैत्य नहीं बल्कि घास खाने वाला साधारण पशु है । इसका अर्थ यह है कि यह पशु किसी और जंगल से आया है और मुझ से कमजोर है । चलो आज इस पशु का मांस चखते हैं ।`
ऐसा सोच कर शेर चुपचाप मेढ़े के पास पहुंचा और उसने अपने पैने पंजों से मेढ़े पर हमला कर दिया और थोड़ी ही देर में उसे मार डाला । इस प्रकार अपनी बुद्धि का प्रयोग करके शेर ने विचित्र व सुंदर मेढ़े का मांस भरपेट खाया ।
लेखक : डॉ प्रियंका सारस्वत
स्वर : श्री सतेंद्र दहिया
सामग्री राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के वैबसाइट से उपलब्ध कराई गई है।
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