करनी का फल

कालू शेर इसके अध्यक्ष थे । पिंकी लोमड़ी सचिव थी और रीनू बन्दर कोषाध्यक्ष थे । जब कभी विशेष बैठक होती, तो नीतू मोरनी मंच संचालन करती ।
कालू शेर बहुत बूढ़े हो गए थे । उनके राज्य में कभी जीव दुखी न रहता । सभी के आवासों पर जाकर सुख-दु:ख व खान-पान की पूछताछ की जाती । एक दिन अध्यक्ष कालू ने सभी वरिष्ठ अधिकारियों की सभा बुलवाई और नम्रता से कहा - `साथियो ! अब मैं `पशु निकेतन` के अध्यक्ष पद पर कार्य करने में असमर्थ हूँ । क्योंकि अब मेरा शरीर बूढ़ा हो गया है । दांतों ने जवाब दे दिया है । आओ, हम सब अब एक योग्य शासक का चुनाव करें ।`
`मैं समस्त सभा की ओर से पिंकी लोमड़ी का नाम अध्यक्ष पद हेतु प्रस्तुत करता हूँ ।` रीनू बन्दर ने कहा ।
`मैं रीनू जी के प्रस्ताव का समर्थन करती हूँ ।` नीतू मोरनी ने कहा ।
इस प्रकार सभी पदों का चुनाव हुआ । बूढ़े कालू राजा के सेवानिवृत्त होने पर उनके पूरे खान-पान की भी व्यवस्था की गई । पिंकी लोमड़ी बहुत चालाक और चापलूस थी । जब नन्दन वन की राजसत्ता उसके हाथ में आ गई, तो उसके पैर धरती पर न पड़ते । पशु निकेतन के जीवों की देखभाल और खान-पान में कमी महसूस होने लगीं । पशु निकेतन का अधिकांश सामान चुपचाप ही लोमड़ी परिवार में पहुंचने लगा ।
दिनोंदिन जानवर भूखों मरने लगे । उन्हें कालू राजा के न्यायपूर्ण शासन की याद आने लगी । पिंकी लोमड़ी को यह अपना अपमान महसूस हुआ । वह कालू राजा को अपने मार्ग का कांटा समझने लगी । एक दिन कालू राजा की अनुपस्थिति में उसने सभी को संबोधित किया � `प्यारे साथियों, आपको मालूम है आज हमारी जीव कितने दुखी हैं । यह सब कालू राजा की मेहरबानी है । वह जीवों को आपस में भिड़वाकर बरबाद करना चाहते हैं ।`
`नहीं, यह कभी नहीं हो सकता ।` हिरण मुखिया ने कहा ।
`अरे मूर्ख! तुम्हें क्या मालूम ? गुफाओं के अंधेरे में खोए रहते हो । तुम्हें दीन-दुनिया की क्या सुध ?` लोमड़ी ने झिड़कते हुए कहा ।
`हमें शर्म आनी चाहिए । कल मैंने बूढ़े कालू को षडयंत्र रचते देखा । उसने हमारा अन्त करने के लिए एक दूसरी सभा तैयार कर रखी है । वे सब आज ही हम सब पर धावा बोलेंगे । इसलिए हमें आज ही जाकर अनका मटियामेट करना चाहिए।` गरजते हुए लोमड़ी ने कहा ।
सभी जीव अनमने मन से तैयार भी हो गए । उसने सीधे ही कालू पर टूट पड़ने का निर्देश दिया। स्वयं चोरी-छिपे लोमड़ी कहीं भाग गई । जब सभी कालू राजा के घर पहुँचे तो वहां पर एक बहुत बड़ा बोर्ड लगा हुआ था- `अपंग सहायता दल` । आगे लिखा था-`पशु निकेतन में पीड़ित पशुओं के लिए रक्षा-कोष` - संचालक - कालू राजा । तभी कालू जी भारी भरकम भीड़ सहित पीड़ित पशुओं के लिए सामान लेकर लंगड़ाते हुए आ रहे थे । जब सभी पशुओं ने यह सब देखा तो उनके पैरों तले की जमीन खिसक गई ।
उन्होंने आव देखा न ताव भागते-भागते उस चापलूस लोमड़ी को दबोच लिया । उसकी खूब पिटाई कर उसे उसकी करनी का फल देकर स्वर्गलोक भेज दिया ।
लेखक : डॉ दिनेश चमोला
स्वर : श्री सतेंद्र दहिया
सामग्री राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के वैबसाइट से उपलब्ध कराई गई है।
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