उपकार का बदला (Upakar Ka Badala) by Dr. Dinesh Chamola

उपकार का बदला

एक बरगद के पेड़ पर कई प्रकार के पक्षियों का बसेरा था I वसंत ऋतु में बरगद हरे भरे पत्तों से लद जाता तो सभी पक्षी अपने संगीत संसार में जुट जाते I वहां सभी आपस में प्रेम से रहते थे I अपने ऊपर इतने सुंदर-सुंदर पक्षियों के डेरों को देख बूढ़ा बरगद  गौरव से फूल जाताI दिन होते ही पक्षी चारे की खोज में नीले आकाश में उड़ारी भर देते तो उनके नन्हे-नन्हे प्यारे-प्यारे रंग-बिरंगे बच्चे बरगद की जटाओं में झूलते रहते I इस बरगत के पेड़ की सुंदरता व पक्षियों की एकता पूरे वन प्रांत में प्रसिद्ध थी I

एक बार शिकारी क्रूर बाज को जंगल के बरगद के पेड़ का पता चला I बस, क्या था I वह मन ही मन फूला न समाया I अब जब पक्षी चारे की तलाश में दूर गए होते तो बाज घात लगाकर उनके बच्चों पर हमला कर देता I वह प्रतिदिन आठ-दस बच्चे मार कर ले जाता I शाम को दाना लेकर उनके माता-पिता लौटते तो अपने बच्चों को न पाकर बहुत निराश होते I जब यह क्रम कई दिनों तक चला तो सभी दुखी हो गए I कुछ ने अपना बरगद का आवास छोड़ दिया I एक दिन सभी पक्षियों ने इस विषय में बैठक की I अलग-अलग पक्षियों ने अलग-अलग रूप में अपने विचार प्रस्तुत किए I वृद्ध व विद्वान कबूतर ने कहा-

`मित्रों, दुष्ट को उसके कुकृत्यों की सजा बदले से नहीं अपितु उपकार से देनी चाहिए I इसको मैं आप को कल सिद्ध कर दिखाऊंगा I`

कबूतर बहुत विद्वान व तांत्रिक था I इसलिए कई-कई बहेलिए उसके संकेतों पर अपना शिकार करते थे I उसने रात को ही उसे व पूरे बाज परिवार को सता-सता कर पिंजरे में बंद करने के लिए कहा I सुबह होने पर बहेलिया ने ऐसा ही किया I कबूतर ने अपनी तंत्र शक्ति से बहेलिए को इसके लिए बहुत धन दिया I वह प्रसन्न हुआ I बहेलिए ने बाज के पूरे परिवार को पिंजरे में उलटा लटका दियाI वह अपनी दुष्टता को याद कर रो रहा था I कबूतर ने सभी पक्षियों को पास के जंगल में पेड़ों पर छिपने के लिए कहा और स्वयं पिंजरे के पास जाकर उससे पूछने लगा-

`मित्र ! क्यों रो रहे हो ?`

`पक्षी मित्र ! मैंने जीवन भर बहुत पाप किए हैं I इसलिए बहेलिए के पिंजरे में तड़प रहा हूं I मैंने बहुतों के परिवार नष्ट किए हैं I यदि कोई मुझे इस से मुक्त कर दे तो मैं उनका आजीवन ऋणी रहूंगा I`

`ठीक है, मित्र ! तो यह लो !` कहते ही उसने अपनी तंत्र शक्ति से पिंजरे से उसे मुक्त कर दिया I

बाहर निकलते ही बाज परिवार उसके सामने हाथ जोड़ कर रोने लगा I उनकी आंखों से टप-टप आंसू बह रहे थे I बाघ ने कहा, `हे मेरे प्राणदाता? आप कौन हैं ?`

`पक्षी मित्र ! मैं वह अभागा कबूतर हूं जिसके आप ने पिछले कई वर्षों से सारे बच्चे मारे हैं, लेकिन संकट में शत्रु के प्राणों की भी रक्षा करना मेरा धर्म है I` यह सुन बाज ने सभी से क्षमा मांगी I उसके बाद बाज बरगद के पेड़ पर उनकी सुरक्षा के लिए दिन-रात डटा रहा I अब सभी प्रेम से आपस में रहने लगे I

लेखक : डॉ दिनेश चमोला
स्वर : श्री सतेंद्र दहिया
सामग्री राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के वैबसाइट से उपलब्ध कराई गई है।

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